Monday, June 8, 2020

NEEL KANTH MANDIR--BHAGWAN SHIV KA AK SWARDIM DWAR

                                                       नीलकंठ मंदिर
         नीलकंठ मंदिर भगवान शिव  पहुत प्रसिद्द मंदिर है जो उत्तराखंड में स्थित ऋषिकेश शहर से २०किमी  है। यहां जाने के लिए आपको लक्ष्मण  झूला से बोलेरो की गाड़ियां मिल जाती है जो लगभग ५०/- हर व्यक्ति का लेते है। यहाँ से नीलकंठ जाने में आपको लगभग ३० मिनट लगेंगे।
         यहां शिवजी की पूजा अर्चना के लिए गंगा जल की आवश्यकता होती है। जो आप गंगा नदी से ले सकते है। बाकि मंदिर परिशर में उपलब्ध पूजा वाली शॉप्स से भी ले सकते है  वैसे तो यहां पूजा के लिए बहुत सी सामग्री थाल मिलते है किन्तु भगवान शिव को केवल गंगा जल और बेलपात ही पसंद है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन से निकला हलाहल विष भगवान शिव ने इसी स्थान पर कंठ में धारण किया था जिस कारण से उनका कंठ नीला पड़ गया था और यह स्थान नीलकंठ कहलाया। नीलकंठ मंदिर ऋषिकेश में स्वर्ग आश्रम की पहाड़ी की चोटी पर बसा हुआ है। 


         श्रुति-स्मरति पुराण के अनुसार देव व् दानवों द्वारा समुद्र मंथन में निकले चौदह रत्नों में से एक कालकूट बिष का विषपान भगवान शिव द्वारा किया गया तथा जिसकी ज्वलंता को शांत करने के लिए भगवान शंकर ने पंकजा और मधुमती नदी के संगम समीप पंचपणी नामक वृक्ष के नीचे समाधिस्थ होकर साठ हजार वर्षो तक तप किया तथा कैलाश लोटने से पूर्व भगवान शिव द्वारा कंठ के रूप में जन कल्याण हेतु शिवलिंग स्थापित किया गया। वर्तमान समय में मंदिर में उपस्थित लिंग शिव जी द्वारा स्थापित किया गया जो की स्वंय भू लिंग है।

           इस  मंदिर की उचाई समुद्र ताल से ९४६ मीटर है
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         Neelkanth Temple is the famous temple of Lord Shiva which is 20 km from the city of Rishikesh located in Uttarakhand. To get here you get Bolero carts from Lakshman Jhula which takes about 50 / - per person. It will take you about 30 minutes to reach Neelkanth from here.
         Here Ganga water is required for worshiping Shiva. Which you can take from the river Ganges. The rest of the temple can also be taken from the shops of worship available in the parish, although here many materials are available for worship, but Lord Shiva only likes Ganga water and Belpaat. It is said that Lord Shiva, the Halahal poison that came out of the churning of the sea, was worn in the throat at this place, due to which his throat became blue and this place was called Neelkanth. Neelkanth Temple is situated on the top of the hill of Swarg Ashram in Rishikesh.

        According to the Shruti-Smriti Purana, one of the fourteen gems, which were found in the churning of the ocean by the gods and demons, was poisoned by Lord Shiva, and to calm the burning, Lord Shankar asked for a tree called Panchapani near the confluence of Pankaja and Madhumati river. After meditating below, he meditated for sixty thousand years and before rolling Kailash, Shivling was established by Lord Shiva for public welfare in the form of a throat. Presently the Linga present in the temple was established by Shiva, which is its own land linga.  

   The height of this temple is 946  meters above sea level.

Thursday, June 4, 2020

JAGESHWAR YATRA

जागेश्वर धाम यात्रा
अल्मोड़ा जिले में स्थित जागेश्वर धाम भगवान  शिव का भव्य धाम है। यह मंदिर बहुत पुराना है यहां आप ७वी और १२ वी शताब्दी की आकर्षक वास्तुकला का नजारा देख सकते है यहां कुछ मंदिर २०वी शताब्दी से भी सम्बन्ध रखते है। लिंग पुराण के अनुसार यह मंदिर भगवान शिव का बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है। यहां जाने के लिए आपको अपनी सेपरेट गाड़ी से जाना चाहिए क्योँकि यहाँ जाने के लिए ट्रैन केवल काठगोदाम तक ही जाती है यहां से आप कैब या टैक्सी बुक करनी पड़ेगी जिससे आप वहां से चलकर पहाड़ों की वादियों का मजा लेते हुए जा सकते है। साथ में बहती हुई नदी जो कल कल करती हुई आवाज़ बहुत ही सूंदर लगती है जिससे आपको जागेश्वर यात्रा करने का मजा ही आ जाता है। यहां नकटवर्ती हवाई अड्डा पंतनगर या देहरादून का जॉली ग्रांट है।यह स्थान सड़क मार्ग से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

यहां पहुंचकर आपको जयादा अच्छे होटल तो नहीं मिलेंगे किन्तु कुल मिलाकर अच्छे होटल मिल जायेंगे जहां यह होटल ज्यादा महंगे भी नहीं होते है। जिससे आपको यहां केवल ५०० /- में सही होटल मिल जायेंगे जिससे आप एक रात गुजार सके। साथ में यहां हर होटल वाला आपको गर्म पानी उपलब्ध करा देता है क्योँकि आप बिना गर्म पानी के नहा नहीं सकते यहां पहाड़ों से निकला ठंडा पानी बहुत ही ठंडा होता है।

मंदिर :-यहां मंदिर परिषर में भगवान शिव की हर रूप की मूर्तियाँ है जैसे दंडेश्वर मंदिर,चंडी का मंदिर,जागेश्वर मंदिर ,कुबेर मंदिर मृतुन्जय मंदिर,नंदा देवी और नौ गृह मंदिर और सूर्या मदिर ।  यहां छोटे बड़े लगभग २०० मंदिर है यहां पहुंचकर बहुत ही मनोरम प्रतीत होता है यहां सावन माह और महा शिवरात्रि पर बहुत ही भीड़ रहती है यहां के शिव मंदिर पर लोगो की बहुत मान्यता है। कुछ लोगो का मन्ना है के ये मंदिर कत्यूरी या चाँद राजवंश के दौरान के हो सकते है कहा जाता है की इनमे से कुछ मंदिरों का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने भी कराया था इन मंदिरों की वास्तुकला को देखकर लगता है कि इन मंदिरों का निर्माण पूजा के लिए नहीं किया जाता होगा क्योंकि अधिकांश मंदिरों के गर्भगृह अपेक्षाकृत बहुत छोटे है,जहां एक पुजारी भी नहीं बैठ सकता। 

जागेश्वर धाम  अल्मोड़ा से ३६ किमी उत्तर पूर्व दिशा में स्थित है जो कुमाऊं रीजन में जटागंगा नदी के किनारे स्थित है यहां देवदार के पेड़ों की बहुत संख्या है और इन वृक्षों की ऊंचाई बहुत होती है के लिए बहुत साफ रास्ते है जहां आप अपनी गाड़ी से पहाड़ों के अद्भुत नज़रों  आनंद लेते हुए जा सकते है। 
पुराणों के अनुसार शिवजी और सप्तऋषिओं ने यहां तपश्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नते उसी रूप में स्वीकार हो जाती थी जिसका भरी दुरूपयोग हो रहा था। आठवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य जागेश्वर आये  और उन्होंने महा मृतुन्जय में स्थापित शिवलिंग को कीलित करके इस दुरूपयोग को रोकने की व्यबस्था की। शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किये जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएं पूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती है।

नसीब_ट्युरिस्ट_ढाबा

                                नसीब_ट्युरिस्ट_ढाबा ये होटल नग्गल के पास हिमाचल प्रदेश बॉर्डर से मात्र 5 किलोमीटर पहले पंजाब में आनन्द पुर स...