जागेश्वर धाम यात्रा
अल्मोड़ा जिले में स्थित जागेश्वर धाम भगवान शिव का भव्य धाम है। यह मंदिर बहुत पुराना है यहां आप ७वी और १२ वी शताब्दी की आकर्षक वास्तुकला का नजारा देख सकते है यहां कुछ मंदिर २०वी शताब्दी से भी सम्बन्ध रखते है। लिंग पुराण के अनुसार यह मंदिर भगवान शिव का बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है। यहां जाने के लिए आपको अपनी सेपरेट गाड़ी से जाना चाहिए क्योँकि यहाँ जाने के लिए ट्रैन केवल काठगोदाम तक ही जाती है यहां से आप कैब या टैक्सी बुक करनी पड़ेगी जिससे आप वहां से चलकर पहाड़ों की वादियों का मजा लेते हुए जा सकते है। साथ में बहती हुई नदी जो कल कल करती हुई आवाज़ बहुत ही सूंदर लगती है जिससे आपको जागेश्वर यात्रा करने का मजा ही आ जाता है। यहां नकटवर्ती हवाई अड्डा पंतनगर या देहरादून का जॉली ग्रांट है।यह स्थान सड़क मार्ग से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
यहां पहुंचकर आपको जयादा अच्छे होटल तो नहीं मिलेंगे किन्तु कुल मिलाकर अच्छे होटल मिल जायेंगे जहां यह होटल ज्यादा महंगे भी नहीं होते है। जिससे आपको यहां केवल ५०० /- में सही होटल मिल जायेंगे जिससे आप एक रात गुजार सके। साथ में यहां हर होटल वाला आपको गर्म पानी उपलब्ध करा देता है क्योँकि आप बिना गर्म पानी के नहा नहीं सकते यहां पहाड़ों से निकला ठंडा पानी बहुत ही ठंडा होता है।
मंदिर :-यहां मंदिर परिषर में भगवान शिव की हर रूप की मूर्तियाँ है जैसे दंडेश्वर मंदिर,चंडी का मंदिर,जागेश्वर मंदिर ,कुबेर मंदिर मृतुन्जय मंदिर,नंदा देवी और नौ गृह मंदिर और सूर्या मदिर । यहां छोटे बड़े लगभग २०० मंदिर है यहां पहुंचकर बहुत ही मनोरम प्रतीत होता है यहां सावन माह और महा शिवरात्रि पर बहुत ही भीड़ रहती है यहां के शिव मंदिर पर लोगो की बहुत मान्यता है। कुछ लोगो का मन्ना है के ये मंदिर कत्यूरी या चाँद राजवंश के दौरान के हो सकते है कहा जाता है की इनमे से कुछ मंदिरों का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने भी कराया था इन मंदिरों की वास्तुकला को देखकर लगता है कि इन मंदिरों का निर्माण पूजा के लिए नहीं किया जाता होगा क्योंकि अधिकांश मंदिरों के गर्भगृह अपेक्षाकृत बहुत छोटे है,जहां एक पुजारी भी नहीं बैठ सकता।
जागेश्वर धाम अल्मोड़ा से ३६ किमी उत्तर पूर्व दिशा में स्थित है जो कुमाऊं रीजन में जटागंगा नदी के किनारे स्थित है यहां देवदार के पेड़ों की बहुत संख्या है और इन वृक्षों की ऊंचाई बहुत होती है के लिए बहुत साफ रास्ते है जहां आप अपनी गाड़ी से पहाड़ों के अद्भुत नज़रों आनंद लेते हुए जा सकते है।
पुराणों के अनुसार शिवजी और सप्तऋषिओं ने यहां तपश्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नते उसी रूप में स्वीकार हो जाती थी जिसका भरी दुरूपयोग हो रहा था। आठवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य जागेश्वर आये और उन्होंने महा मृतुन्जय में स्थापित शिवलिंग को कीलित करके इस दुरूपयोग को रोकने की व्यबस्था की। शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किये जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएं पूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती है।
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